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|| राम भज्यौ न कियौ कछु - संत सुंदर दास : सद्गुरु सिद्धार्थ औलिया ||
|| से तन नाश कियौ मति भोलै - संत सुंदर दास : सद्गुरु सिद्धार्थ औलिया ||
|| वा पद राम सों करि नेह - संत चरनदास : सद्गुरु सिद्धार्थ औलिया ||
|| सोई जन राम को भावै हो- संत सुंदर दास : सद्गुरु सिद्धार्थ औलिया ||
|| सखि री हिलि मिलि रहिया - संत चरनदास : सद्गुरु सिद्धार्थ औलिया ||
|| कबहूँ कै हँसि उठय - संत सुन्दरदास : सद्गुरु सिद्धार्थ औलिया ||
|| नाम ते करहु सनेह - संत जगजीवन : सद्गुरु सिद्धार्थ औलिया ||
|| आनंदु आनंदु सभु को कहै - गुरु अमरदास : सद्गुरु सिद्धार्थ औलिया ||
अष्टावक्र प्रवचनमाला में ओशो कहते हैं करना कुछ नहीं है। इसका मतलब समझाएँ : सद्गुरु सिद्धार्थ औलिया
|| गुरु के चरन की रज लैके - संत यारी साहब : समर्थगुरू सिद्धार्थ औलिया ||
|| साधना में संघ की क्या भूमिका है?: सद्गुरु सिद्धार्थ औलिया ||
|| निर्गुण कथा कथा है हरि की - गुरु रामदास : सद्गुरु सिद्धार्थ औलिया ||